Friday 16 January 2015

मजीठिया वेज बोर्ड - भड़ास आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार

Yashwant Singh : अखबार मालिक अपने मीडियाकर्मियों को मजीठिया वेज बोर्ड के हिसाब से सेलरी, एरियर नहीं दे रहे हैं. जो-जो मीडियाकर्मी सुप्रीम कोर्ट गए, उनके सामने प्रबंधन झुका और उनको उनका हक मिल गया. पर हर मीडियाकर्मी सुप्रीम कोर्ट तो जा नहीं सकता. इसलिए भड़ास ने सुप्रीम कोर्ट के एक धाकड़ वकील Umesh Sharma को अपना वकील नियुक्त किया और देश भर के मीडियाकर्मियों का आह्वान किया कि अगर वो मजीठिया वेज बोर्ड के हिसाब से अपना हक सेलरी एरियर चाहते हैं तो सिर्फ मुझे एक निजी मेल कर दें, अपना नाम पता अखबार का नाम अपना पद अखबार का एड्रेस मोबाइल नंबर मेल आईडी आदि देते हुए. अब तक सैकड़ों मेल मिल चुके हैं.

जिन जिन ने कहा है कि वे गोपनीय रहकर लड़ेंगे, उनकी इच्छा का पूरा सम्मान करते हुए अलग गोपनीय कैटगरी में रखा गया है. जिन जिन ने कहा है कि वे खुलकर लड़ेंगे, उन वीरों को महावीर कैटगरी में रखा गया है. पूरा आलेख यहां http://goo.gl/JgDpS2 है. अब ये कहना है कि मेल भेजकर लड़ाई में शिरकत करने की इच्छा प्रकट करने की आखिरी डेट बीत चुकी है, जो 15 जनवरी थी. लेकिन आज और कल, दो दिन का समय बढ़ा दिया गया है. ये ही दो दिन हैं, जिसमें आपको तय कर लेना है कि आप चुप्पी मारकर मालिकों के हिसाब से जियेंगे, मालिकों के रहमोकरम पर या अपना हक लेकर अपनी लड़ाई लड़कर खुद को सच्चा मीडियाकर्मी साबित करेंगे. ध्यान रखिएगा. जिन लोगों को लगता है कि मजीठिया वेज बोर्ड मसले पर मालिकों के हिसाब से चलने के कारण उनकी नौकरी पक्की है तो सात फरवरी के बाद ये गलतफहमी दूर हो जाएगी.
सात फरवरी के बाद अखबारों के मालिक बड़े पैमाने पर तबादले और निष्कासन की कार्रवाई करने जा रहे हैं. अगर आप गोपनीय रूप से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर देते हैं तो कल ट्रांसफर या निष्कासन पर आप सुप्रीम कोर्ट में जाकर कह सकते हैं कि प्रबंधन आपको इसलिए परेशान कर रहा है क्योंकि आप उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ रहे हैं. ऐसी स्थिति में आपको स्टे मिल सकता है और मालिकों की छाती पर चढ़कर मूंग दलने का मौका मिल सकता है.

मालिक किसी के नहीं होते. वे केवल धन के होते हैं. मालिकों ने अगर आपसे साइन करा लिया है कि आपको मजीठिया नहीं चाहिए तो कोई बात नहीं. ये साइन कराना, ये लिखवा लेना सुप्रीम कोर्ट में अमान्य हो जाएगा. कोई मालिक अपने यहां काम करने वाले कर्मचारी से कुछ भी लिखवा ले, उसका कोर्ट में कोई मतलब नहीं है. यह केवल अपने कर्मचारियों को साइकोलाजिकली हरा देने की रणनीति है ताकि उन्हें लगे कि वे तो साइन कर चुके हैं मजीठिया न लेने का, इसलिए वे कैसे लड़ सकते हैं. अगर आपने साइन भी कर दिया हो तो आप लड़ सकते हैं. आप नौकरी छोड़ चुके हों तो भी आप क्लेम कर सकते हैं अपने एरियर का. आपको मजीठिया के हिसाब से नहीं बल्कि मालिक ने अपने हिसाब से थोड़ी सेलरी बढ़ाकर मजीठिया लाभ मिलने की बात कही हो तो आप भी क्लेम कर सकते हैं कि आपको उचित सेलरी नहीं मिल रही.

कुल मिलाकर कहने का आशय ये कि आप मजीठिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जाने की तैयारी करें, सिर्फ एक मेल भेजकर. आपको न तो कहीं आना है न कहीं जाना है. आप केवल छह हजार रुपये वकील साहब के एकाउंट में जमा करेंगे और एक अथारिटी लेटर मुझे मेल कर देंगे. इसके अलावा आपको कुछ नहीं करना है. जीत की गारंटी भड़ास दे रहा है, क्योंकि आलरेडी इस मामले में कई पत्रकार साथी जीत चुके हैं. अगर आपको मन में कोई सवाल हो तो मुझे मेल कर सकते हैं, yashwant@bhadas4media.com पर.

जिन सैकड़ों लोगों ने आलरेडी मुझे मेल कर दिया है, वह केवल दो दिन यानि 18 जनवरी तक इंतजार करें. उन्हें अथारिटी लेटर का फार्मेट और वकील साहब के बैंक एकाउंट का डिटेल मेल कर दिया जाएगा.
जिन-जिन के मेल आ गए हैं, उनका डिटेल एक जगह गोपनीय रूप से संग्रह कर लिया गया है और आगे का काम शुरू किया जा चुका है.
कहना चाहूंगा कि वकील साहब के लिखे इन दो आलेखों का अगर कोई पत्रकार साथी हिंदी अनुवाद कर दे तो ढेर सारे हिंदी भाषी पत्रकारों का भला होगा. लिंक ये हैं...
http://bhadas4media.com/print/3336-newspaper-establishment-definition-for-majithia-wage-board     
http://bhadas4media.com/print/2025-majithia-remedies
http://bhadas4media.com मधून साभार