Saturday 1 August 2015

जर्मन पत्रकारों पर राजद्रोह का आरोप



पांच दशक में ऐसा पहली बार हुआ है कि जर्मनी में किसी पत्रकार के विरूद्ध देशद्रोह का आरोप लगा हो. डिजिटल न्यूज बेवसाइट नेत्सपोलिटीक चलाने वाले पत्रकारों के दोषी पाए जाने पर आजीवन कारावास भी संभव.

एक न्यूज बेवसाइट ने रिपोर्ट किया कि जर्मन सरकार ऑनलाइन सूचना पर निगरानी बढ़ाने की योजना बना रही है. जर्मनी के सार्वजनिक प्रसारणकर्ता एआरडी के अनुसार नेत्सपोलिटीक डॉट ओआरजी ने इसी साल लीक किए गए गोपनीय दस्तावेजों के आधार पर कई लेख प्रकाशित किए. एक लेख में बताया गया कि कैसे घरेलू खुफिया एजेंसी संविधान संरक्षण कार्यालय अपने ऑनलाइन निगरानी कार्यक्रम को बढ़ाने के लिए अतिरिक्त फंडिंग की मांग कर रहा है. एक अन्य रिपोर्ट में सोशल मीडिया पर नजर रखने के लिए एक विशेष ईकाई की स्थापना करने की योजना का जिक्र था.

अभियोक्ता पक्ष की प्रवक्ता ने कहा, "संघीय अभियोजक ने नेत्सपोलिटीक के प्रकाशित हुए इंटरनेट ब्लॉग के मामले में राजद्रोह के संदेह की जांच शुरु कर दी है." प्रवक्ता ने आगे बताया कि यह कदम जर्मनी की घरेलू खुफिया एजेंसी द्वारा शिकायत दर्ज किए जाने के बाद उठाया गया. जर्मनी के संविधान संरक्षण कार्यालय से संबंधित लेख वेबसाइट पर 25 फरवरी और 15 अप्रैल को प्रकाशित हुए थे. एजेंसी का आरोप है कि वे लेख उनके लीक किए गए गोपनीय दस्तावेजों के आधार पर लिख गए थे. नेत्सपोलिटीक की वेबसाइट इंटरनेट से जुड़ी राजनीति, डाटा सुरक्षा, सूचना की आजादी और डिजिटल अधिकारों से संबंधित मुद्दे उठाती है.

जर्मन मीडिया का कहना है कि बीते पचास सालों से भी अधिक समय में यह पहली बार हुआ है कि किसी पत्रकार पर राजद्रोह का आरोप लगा हो. नेत्सपोलिटीक के पत्रकार आंद्रे माइस्टर ने कहा, "यह प्रेस की आजादी पर हमला है." माइस्टर और उनकी वेबसाइट के मुख्य संपादक मार्कुस बेकेडाल इस जांच के निशाने पर हैं. माइस्टर ने कहा, "हम इससे डरने वाले नहीं हैं." जर्मन प्रेस एसोसिएशन के प्रमुख मिषाएल कोंकेन ने माइस्टर के बयानों का समर्थन करते हुए कहा कि यह जांच "दो आलोचनात्मक पत्रकारों का मुंह बंद करने का एक अस्वीकार्य प्रयास है."

समाचार साप्ताहिक डेय श्पीगेल के एक लेख के कारण उसके प्रकाशक की राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तारी के बाद 1962 में जर्मन रक्षा मंत्री फ्रांत्स योजेफ श्ट्राउस को अपना पद छोड़ना पड़ा था. इस मामले में दोषी सिद्ध होने पर पत्रकारों को एक साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा मिल सकती है